Tuesday, January 2, 2018

eco -poetry

सर्वश्रेष्ठता
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चलना छो़ड़ दिया होता हवा ने
बहना छो़ड़ दिया होता नदी ने
उड़ना छोड़ दिया होता बादल ने आकाश में
होना छोड़ दिया होता समय में झुर्रियाँ
हम हम न रहते ।

पत्थर उतना सख्त न होता
मिट्टी उतनी कोमल न होती
फूल सुन्दर न खिलते
काँटे नुकीले न होते
हम कठोरता, नम्रता, सुन्दरता और पीड़ा कहाँ से सीखते ?

एक मुठ्ठी साँस दबाकर कोख में
एक-दो टुकड़े जमीन को अपना कहकर
आसानी से हासिल करके सारी चीजें
हम स्वघोषित सर्वश्रेष्ठ प्राणी हैं ।

नही समझेंगे प्राकृतिक नियमितता
नही सोचेंगे इनके नियम और आवधिक अस्तित्व
किसी दिन
किसी भौगर्भिक समय के विकसित जीव की सन्तान
पिंजरे में कैद इन्सान को देखकर कहेंगे
“किसी युग के विकसित जीव थे ये”

Translated by Chandra Gurung

Eco-poetry

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